..................... हम दो हमारे दो ....................
हम दो हमारे दो , बस यही हमारी दुनियाँ हैं ।
यही दुनियाँ है अच्छी , यही हमारे दो कलियाँ हैं।।
जुड़े हैं हम आपस में , प्यार के धागों से ;
किसी भी तरह कम नहीं , ये स्वर्ग सी गलियाँ हैं।।
ये नन्हे बच्चे जब , तोतली बोली में ज़िद्द करते ;
लगता है बस , हमारे मुँह में मिश्री की डलियाँ हैं।।
आपस में उछलते, लड़ते , खेलते दो बच्चे देखकर;
लगता है जैसे , मुँह में फूटते हुए मूँगफलियाँ हैं।।
पूरे देश में इस संदेश को क़ुबूल किया जाए ;
देश ऐसे बढ़ते चले,जैसे तरक्की की तितलियाँ हैं।।
जलो मत , बात समझो और कोशिश करो ;
तुम्हारे सामनेभी हाज़िर कामयाबी की थैलियाँ हैं।।
जो हमारी खुशियों को देखकर ईर्ष्या करे ;
समझें,हमारे सांसारिक"आनंद"के वे छलियाँ हैं।।
---------------------देवानंद साहा "आनंद अमरपुरी"
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