सिलसिला ज़िंदगी का न थमता कभी,
ऊँचे अरमाँ अगर दिल में पलते रहें।
रात की कालिमा का न होगा असर-
दीप उम्मीदों के गर जो जलते रहें।।
जोश में होश को कभी खोना नहीं,
पग में काँटे चुभें फिर भी रोना नहीं।
प्यार काँटों से मिलता है अद्भुत मगर-
प्रेम की धुन पे गर होंठ हिलते रहें।।
रात की कालिमा....
प्रेम की डोर को कभी कटने न दो,
बोली-भाषा में अपने को बटने न दो।
कोशिशें दुश्मनों की भी शर्माएँगीं -
राहे उल्फ़त पे गर यूँ ही चलते रहें।।।
ज़िंदगी ग़म-खुशी का है दरिया मग़र,
पार करना इसे बड़ी हिकमत से है।
चंद लम्हों में मंज़िल मलेगी ज़रूर-
फूल जज़्बों के गर दिल में खिलते रहें।।
कौन कहता है यह काम मुमकिन नहीं,
जीत मिल जाये ऐसा तो हर दिन नहीं।
करना मुमकिन नामुमकिन को आसान है-
हौसले ज़िंदगी में गर पलते रहें ।।
एक अच्छी समझ दोस्त से कम नहीं
ग़म का मारा वही जिसका हमदम नही।
है यक़ीन ख़ुद पे करना इक अच्छी समझ-
रब करे पल नासमझी के टलते रहें।।
अलविदा रात कह के सुबह देती है,
जूझ कर जोखिमों से फ़तह मिलती है।
धुंध का भी असर कभी होगा नहीं-
कण उजाले के गर उसमें घुलते रहें ।।
रात की कालिमा का....
डॉ. हरि नाथ मिश्र
9919446372
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ. हरि नाथ मिश्र
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