डॉ. हरि नाथ मिश्र

सिलसिला ज़िंदगी का न थमता कभी,
ऊँचे अरमाँ अगर दिल में पलते रहें।
रात की कालिमा का न होगा असर-
दीप उम्मीदों  के गर जो जलते रहें।।
          जोश में होश को कभी खोना नहीं,
          पग में काँटे चुभें फिर भी रोना नहीं।
           प्यार काँटों से मिलता है अद्भुत मगर-
           प्रेम की धुन पे गर होंठ हिलते रहें।।
                                   रात की कालिमा....
प्रेम की डोर को कभी कटने न दो,
बोली-भाषा में अपने को बटने न दो।
कोशिशें दुश्मनों की भी शर्माएँगीं -
राहे उल्फ़त पे गर यूँ ही चलते रहें।।।
           ज़िंदगी ग़म-खुशी का है दरिया मग़र,
           पार करना इसे बड़ी हिकमत से है।
           चंद लम्हों में मंज़िल मलेगी ज़रूर-
           फूल जज़्बों के गर दिल में खिलते रहें।।
कौन कहता है यह काम मुमकिन नहीं,
जीत मिल जाये ऐसा तो हर दिन नहीं।
करना मुमकिन नामुमकिन को आसान है-
हौसले ज़िंदगी में गर पलते  रहें ।।
          एक अच्छी समझ दोस्त से कम नहीं
           ग़म का मारा वही जिसका हमदम नही।
           है यक़ीन ख़ुद पे करना इक अच्छी समझ-
           रब करे पल नासमझी के टलते रहें।।
अलविदा रात कह के सुबह देती है,
जूझ कर जोखिमों से फ़तह मिलती है।
धुंध का भी असर कभी होगा नहीं-
कण उजाले के गर उसमें घुलते  रहें ।।
                         रात की कालिमा का....
                                 डॉ. हरि नाथ मिश्र
                                   9919446372


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