डॉ राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

*फ़र्ज़* -


लम्बी लम्बी डगें भरते हुए आज यथावत लाल कुछ बेचैनी की मुद्रा  में हाँफते हुए चले जा रहे थे। तभी एकाएक मेरी नजर उनकी मुख मुद्रा पर पड़ी पहचानने में देर नहीं लगी क्योंकि वो साप्ताहिक मंडली के जुझारू साथी जो हैं, मैंने राम-राम करते हुए पूछ ही लिया 
"भाई यथावत जी क्या हुआ, कैसे दौड़ लगाए जा रहे हो? कुछ परेशान कैसे दिख रहे हो।"
इतना कहते हुए मैंने हाथ बढ़ाया उनसे मिलाने के लिये।
यथावत जी दूर से ही हाथ जोड़कर बोले-
''भैया आज मुझसे दूर ही रहो। उसी चीनी राक्षस ने हमें घेर लिया है उसे ही टेस्ट कराने जा रहें हैं।' इतना कहते कहते दो तीन छींकें मार दी।
मैं भी घबराकर थोड़ा पीछे हटा 'सोसल डिस्टेंसिंग' करने के लिये और झट से अपना हैंकी मुँह पर बाँध लिया।
प्रक्टिकली तो मुझे भी दूरी बना लेनी थी किन्तु मित्र की इस कंडीशन को देखते हुए तरस आ रहा था। मन भागने को कर रहा था किन्तु दिल सहायता करने को और फ़र्ज़ निभाने को धड़क रहा था।
आखिर धड़कते हुए दिल की आवाज़ सुनी और पूछ लिया, "आख़िर बात क्या है, परेशान कैसे हो? घर से कोई साथ नहीं आया तुम्हें दिखाने के लिये?"
यथावत लाल यथार्थ की धरती पर आ ही गये यानी धम्म से जमीन पर बैठ गए, मैं भी सोशल डिस्टेंसिंग भूल गया और उनको संभालने लगा।
उन्होंने अपनी आँखों से आँसू पौंछते हुए कहा- "भैया तुम हमसे दूर ही रहो, काहे को आफत मोल ले रहे हो मुझे तो जाना ही है ।"
"कैसी बातें करते हो यार। हमारी तुम्हारी तो एक ही बात है। आपस मे सब सुख दुःख आपस में शेयर करते हैं आज जब तुम मुसीबत में हो तब तुम्हें छोड़ दूँ ऐसा हो सकता है क्या?" मैंने ढाँढस बंधाते हुए कहा।
सीरियस मोड़ पर आते हुए अपनी अश्रु धारा को रोकते हुए कुछ मन की बात कहने को हुए 
"भाई क्या बताएं ?" कहते कहते रुक गए।
मैंने कहा "बताओ,भाई क्या हुआ कुछ तो बोलो."
आखिर उनके मुख से वचन इस प्रकार निकले-
आज मेरी बहू ने मुझे बड़ी नेक सलाह दी है उसी का पालन कर रहा हूँ।" कहते कहते फिर रुक गए।
"बोलो बोलो मित्र यथार्थ जी।" मैं यथार्थ लाल को यथार्थजी ही बिल्ट था शुरू से ही।
रुंहासे स्वर में कहने लगे-
"बाबूजी आपको छींके भी आ रही हैं कुछ खाँसी भी है सिंप्टम्स कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं । अब आप तो जानते ही हो घर में बच्चे भी हैं 'वो' भी हैं मुझे तो सबका ध्यान रखना हैं कुछ दिन के लिए बाहर ही कहीं रह लो मतलब आश्रम बगैरह में कुछ हुआ तो सरकार वैसे भी इलाज कर ही रही है।  जब ये सब कुछ ठीक हो जाए तो फिर आ जाना।" कहते कहते फफकने लगे।
उनकी ये बातें सुनकर मेरी भी आँखे भर आयीं कहीं ये स्थिति मेरी भी न हो जाये किन्तु अपने बच्चो पर मुझे भरोसा था।
उनको उठाया रिक्शा बुलाया और अपने घर लाकर बाहर बैठक में लिटा दिया, सावधानीभी पूरी बरती सेनेटाइज भी किया अपने आपको।
फिर व्हाट्सएप पर मिले नम्बरों पर काल किया तो कुछ देर बाद टीम आयी चेक किया कोई सिंप्टम्स न दिखाई दिए फिर भी सैम्पल लिए।फिर भी हिदायत देकर चले गए इन्हें क्वारंटाइन में रखियेगा।
मैंने दस बारह दिन डॉक्टरों के अनुसार ही रखा। रिपोर्ट निगेटिव मेरी भी जान में जान आयीआयी । उन्हें केवल जुकाम खाँसी हुआ था  सो ठीक गया। 
आभार की मुद्रा में हाथ जोड़कर मुझे गले लगा लिया और बोले,
"मित्र इतना बड़ा संकट मोल लेकर तुमने जो मेरी सेवा की हैउसे कभी भी भूल नहीं सकता जब घर ने ठुकरा दिया हो तब मुझे सहारा दी इससे कभी उऋण नहीं हो सकता। केवल धन्यवाद ही कह सकता हूँ।"
"नहीं मित्र कैसी बात करते,हो ये तो मेरा फ़र्ज़ था" 
 लेकिन जाते -जाते  एक  लिफाफा मुझे थमाते हए  बोले -
 "इसे  इसे  डी एम कार्यालय भिजवा देना आज देश पर संकट की घड़ी है शायद  किसी वृद्ध के काम में आ जाये यदि घर वाले निकाल भी दें तो सरकार कुछ कर सके ये मेरा निवेदन पूरा अवश्य कर देना।"
 "निश्चिंत रहो मित्र आज ही भिजवा दूँगा।"
 लेकिन अगले दिन जब सोशल ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर समाचार चला तो मैं दंग रहा गया कि यथावत लाल ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिये प्रधानमंत्री राहत कोष में डेढ़ करोड़ दान में दिए।
यथावत लाल वृद्धाआश्रम में लगे टी वी न्यूज सुन रहे थे ये समाचार आत्म संतोष के साथ देश हित कुछ फ़र्ज़ निभा सका ,वहीं उनकी पुत्र वधू सिर लटकाकर इस न्यूज़ को सुन रही थी कि काश मैंने अपने बाबूजी के प्रति फ़र्ज़ निभाया होता ! मैं  भी सगर्व सुन रहा था कि   मुझे  मित्रता का फ़र्ज़ निभाने का  अवसर  मिला।


डॉ राजीव पाण्डेय
(कवि,कथाकार,हाइकुकार,समीक्षक)
1323/ग्राउंड फ्लोर,सेक्टर 2
वेबसिटी ,गाजियाबाद(उत्तर प्रदेश)
मोबाइल-09990650570
ईमेल- kavidrrajeevpandey@gmail.com


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