डॉ सरला सिंह स्निग्धा दिल्ली

होली
उड़े देखो अबीर ,उड़े देखो गुलाल
सबमिलि खेलन निकले देखो होली।
कोऊ भया है नीला कोऊ भया लाल ,
सब की लागे है सतरंगी देखो टोली।
राम लगे रहमान गले पीटर भी आये,
सबहीं लेकर झांझमंजीरा गाये होली।
मैं तो गयी है खोय ,देखो सबही हम हैं ,
सबमिलि नाचे-गाये रंग प्रीति है घोली।
कहीं चले पिचकारी कहीं चले रंग भारी,
चारों और दिखे बस मस्तानों की टोली।
कहीं छने है भांग कहीं छने है पकौड़ा ,
सब दिशि छायी है बस होली ही होली।


डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली


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