डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


देख वांसुरी-ध्वनित-तरंगें अति विह्वल मेरा प्याला,
वंशी की आहट की मस्ती में पागल मेरी हाला,
पीनेवाले गोपी बनकर थिरक रहे अपने में ही खुद,
वृंदावन सी  आज दीखती मेरी पावन मधुशाला।


कहता मैँ अपने मित्रों से देखें वे केवल प्याला,
यही सलाह देता हूँ उनको पीते रहें सिर्फ हाला,
यही निवेदन उनसे मेरा देखें मेरे साकी को,
मित्रों!छोड़ जगत की माया, आओ मेरी मधुशाला।


मन को यदि आराम चाहिये रहो देखते बस प्याला,
महा शून्य की यात्रा करने हेतु चलो पीने हाला,
 सार्थक निष्कामी -अभिमानी बनने हेतु देख साकी,
अद्वितीय जीवन की संगिनि मेरी पावन मधुशाला।


सतत अहर्निश दिव्य साधना से मिलता शिव सा प्याला,
अति कोशिश  मन से करने पर मिलती शक्ति सदृश हाला,
 जन्म-जन्म के पुण्यार्जन का फल साकी कहलाता है,
 जीवन के संग्राम-समर की युद्धभूमि है मधुशाला।


देना है यदि मात जगत को कर सुन्दर बन वर -प्याला,
सुनो गुनी बन धावक जैसा पीना शौर्य सदृश हाला,
नवाचार नित करते रहना शान्त भाव से साकी बन,
प्रगति विरोधी की अवरोधक मेरी पावन मधुशाला।


असमंजस में डाला करता है सबको मेरा प्याला,
बुद्धिप्रदात्री -ज्ञानदायिनी अति कौतूहल निज हाला,
अचरज करता यह जग सारा देख परमप्रिय साकी को,
 बनी हुई आश्चर्य नित्य-नव मेरी पावन मधुशाला।


रचनाकार:


डॉ0 रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


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