डॉ0हरि नाथ मिश्र

कर्म के दीप यदि तुम जलाते रहो,
कष्ट के सब तिमिर लुप्त हो जाएँगे।
होगा दर्शन त्वरित एक सुप्रभात का,
बंद पंकज भ्रमर मुक्त हो जाएँगे।।
   कर निरीक्षण तनिक तू अखिल विश्व का,
धरती, अंबर व सरिता सप्त  सिंधु   का।
सबके आधार में तम ही प्रच्छन्न  है,
ज्योति-दाता परंतु सूर्य प्रसन्न   है।
धैर्य से पथ पे यदि तुम निरंतर चलो-
आपदाओं के क्षण लुप्त हो जाएँगे।।
   रात्रि चाहे कुहासों से आच्छन्न हो,
 चाँदनी का गगन क्षेत्र आसन न हो।
धुंध का ही चतुर्दिक प्रहर क्यों न हो?
 कंटकाकीर्ण आपद डगर क्यों न हो?
चेत मस्तिष्क मानव का चैतन्य नहीं-
स्वप्न-सरगम के सुर सुप्त हो जाएँगे।।
   स्वार्थ-लोलुप न हो कर्म-साधक बनो,
कर्म ही ईष्ट है,कर्मोपासक बनो।
सृष्टि का धर्म बस कर्म ही कर्म है,
कर्म ही धर्म है,कर्म ही धर्म है।
कर्म की यष्टि से यदि करो पथ-भ्रमण-
लक्ष्य जीवन के सब तृप्त हो जायेंगे।।
             कर्म के दीप यदि तुम जलाते रहो....।।
              डॉ0हरि नाथ मिश्र
         9919446372


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...