डॉ0हरि नाथ मिश्र

*ज़िंदगी*
अगर ज़िंदगी हम जिएँ हो निडर,
घड़ी मुश्किलों की भी टल जाएगी।
चूमकर हर क़दम तब ये तूफ़ाँ कहे-
अब बता,नाव तेरी किधर जाएगी??


आसमानों से बातें हवाएँ करें,
भहरें पर्वत भले,वृक्ष उखड़ें सभी।
धार सरिता की तीखी बहे क्यूँ नहीं-
खुद ब खुद चल के मंज़िल इधर आएगी।।


नभ में सूरज अडिग हो के रहता सदा,
चित्त स्थिर किए, हो परम शांत वो।
रात की चाँदनी  छिन है जाती भले-
चाँदनी को मग़र रात फिर पाएगी।।


कर्म करने में रखता है विश्वास जो,
मन में उसके न चिंता का डेरा रहे।
लक्ष्य पाना ही मन में रहे मात्र यदि-
एक दिन यश-पताका भी लहराएगी।।


चींटियाँ अपनी राहें बदलतीं नहीं,
टूट जातीं मग़र वे बिखरतीं नहीं।
इस तरह लक्ष्य के प्रति यदि रहें हम सजग-
धैर्य को कोई चिंता न दहलाएगी।।


फ़िक्र करने से ढीला रहे संतुलन,
मन नहीं संतुलित तो न मंज़िल-मिलन।
ध्यान में,दृष्टि में यदि रहे संतुलन-
बिंदु तक साधना हमको पहुँचाएगी।।


होकर निश्चिंत यदि हम जिएँ ज़िंदगी,
ज़िंदगी भी करेगी हमें वंदगी।
मुश्किलों में अगर मुस्कुराते रहें-
मौत भी अंत में मात खा जाएगी।।
                डॉ0हरि नाथ मिश्र
                9919446372


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