"अंधा"
स्वारथ में जो अंधा होय, समझो उसको असली अंधा.,
नहीं परोपकार का भाव, अपना मतलब सबसे ऊपर.,
करता अपने लाभ की बात, पहुंचाकर के हानि अन्य को.,
अपना उल्लू करता सीध, चाहे रोये भले दूसरा.,
कुकरम करता है दिन-रात, सत्कर्मी कहता खुद को ही.,
मन में नहीं है पश्चाताप, घोर निरंकुश अपयशभागी,.,
मन में रहती छोटी सोच, अंधकार में जीता स्वार्थी.,
घृणित कर्म सब धर्म समान, भोगी-रोगी-अंधा-कामी.,
देहवाद ही है पुरुषार्थ,सहज अलौकिक भाव नदारद.,
सदा धूर्तता की ही सोच, रखता मन में स्वार्थी-अंधा.,
करत लूटने का ही काम, चोरकट-लंपट-पतित भयंकर.,
मन में कभी न सुन्दर भाव, मन में मैली वृत्ति विचरती.,
जिसका पाये ले वह लूट, ताक-झाँक में रहता प्रति पल.,
मानवता से नहीं है प्यार, परम अपावन गन्दी हरकत.,
गन्दा नाला से ही स्नेह, कीड़ा जैसा जीवन अच्छा.,
स्वार्थवाद ही सच्चा धर्म, धर्म-कर्म सब मरे हुये हैं.,
अंधापन ही लगता नीक, स्वार्थी की यह जीवन-यात्रा।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली हरिहरपुरी ।
9838453801
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