"इधर-उधर"
कोई नहीं है इधर-उधर
है भी तो इधर-उधर।
जहाँ देखता हूँ सब बेखबर
लगता जैसे सब बेघर।
कोई तो अपना हो
भले ही सपना हो।
हम तो सब स्वीकार करते हैं
सबका इंतजार करते हैं।
कोई तो हो
अच्छा या बुरा हो।
बुरे से भी मिलो
कमलवत खिलो।
बात हो या न हो
मन में खटास न हो ।
कोई कैसा भी हो
आप अच्छा बने रहो ।
आदमी रहते हुए भी नहीं है
जो कुछ है सब सही है।
सृजन बेजोड़ है
भले ही मुठभेड़ है।
जो न बोले उससे भी बोलो
ग्रन्थि को खोलो।
आत्मोद्धार करो
सबका सत्कार करो।
स्वयं निर्मल बनो
निर्दल बनो।
गुटवंदी सम्बंधों की दुश्मन है
मन में परायापन है।
विरोध से बचो
सुन्दर संसार रचो।
अधूरी कविता लिख रहा हूँ
मनुष्यता को नमन कर रहा हूँ।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
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