"श्री प्रीति महिमामृतम"
प्रीति रसायन औषधी का कर नित रसपान।
आदि काल से अद्यतन यह मूलक सद्ज्ञान।।
करो सदा रसपान इसी का।नित्य करो गुणगान इसी का।
जिसके पास प्रीति रसधारा।वही जगत में सबसे प्यारा।।
जिसे प्रीति का ज्ञान नहीं है।जग में उसका मान नहीं है।।
समझ प्रीति को परम सुन्दरी।यह अति मादक तरल मनहरी।।
जिसके उर में प्रीति बरसती।वहीं सदा मानवता रहती।।
जिसे प्रीति से नहीं प्रीति है।उर में उसके घृणित नीति है।।
जहाँ प्रीति है तहँ परमेश्वर।प्रीति बिना यह जगत भयंकर।।
प्रितिपरक भावों में जीना।अति मनमोहक प्याला पीना।।
रहना सदा प्रीति के संगा।मिल जायेंगी पावन गंगा।।
प्रीति सरित में सदा नहाओ।प्रीति वन्दना प्रति दिन गाओ।।
खो जाओ अपने ही भीतर।रखा हुआ कुछ नहीं है बाहर।।
अन्तःपुर में बैठकर करो प्रीति का जाप।
इस प्रकाश की कोठरी में नहिं जड़-संताप।।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें