"मेरी पावन मधुशाला"
अपनेपन का भाव लिये मन एक आत्मवादी प्याला,
आत्मवादिनी बुद्धिप्रदात्रीहै मेरी बौद्धिक हाला,
आत्मवाद के शंखनाद सा ले कर- ध्वज फिरता साकी,
आत्मवाद के सिंहासन सी मेरी पावन मधुशाला।।
बना आत्मा स्वयं आत्मवत सर्व भूत के प्रति प्याला,
आत्मज्ञानिनी भावों में ही बहती रहती है हाला,
आत्मज्ञानसम्पन्न विज्ञ सा मेरा नित आतम साकी,
आत्मालाय की बनी निवासिनि मेरी पावन मधुशाला।
साधारण इंसान नहीं है अति विशिष्ट मेरा प्याला,
साधारण सा जल मत समझो अति पवित्र मेरी हाला,
कभी न सोता नित्य जागरण करता शिवसमता-साकी,
परम विशिष्ट पवित्र रसालय सदा अमृता मधुशाला।
नित्य स्नान कर मधुशाला के मंदिर में रहता प्याला,
बड़े प्रेम से तैयारी कर मह-मह महकत है हाला,
साकी अपने दिव्य भाव में तिलक लगाए मस्तक पर,
हाथ पकड़ पीनेवालों को पहुंचा देता मधुशाला।
दिव्य चमकते प्यालों पर सम्मोहित हो जाता प्याला,
अधरों पर रखते रोमांचित हो उठता पीनेवाला,
साकी का अंदाज बयां करना लगता है कठिन बहुत,
शानदार अतिशय प्रभावमय सहज सुशोभित मधुशाला।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
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