डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"


कला कलावति कालिका कलिमलहरण कवित्त।
प्रिय अम्बा माँ शारदे सबकी कृती-निमित्त।।


कवि बनने की शिक्षा दो माँ।तारक मंत्र सीखा दो हे माँ।।
बनी कालिका असुर भगाओ।दिल में दैवी भाव जगाओ।।
लिखें-पढ़ें हम तेरा वन्दन।करें सदा तेरा अभिनन्दन।।
काम करें अनवरत आपका।ज्ञान मंत्र दो सहज जाप का।।
चक्षु खुले अज्ञान मिटे सब।तुझपर पर ही नित ध्यान रहे अब।।
कलाविहीन रहे नहिं कोई।लिखे अमर साहित्य हर कोई ।।
बन संगीत सदा घर में रह।हृदय पटल पर गीत बनी बह।।
संस्कृत में शिव श्लोक लिखें हम।शिवमय बनकर सदा दिखें हम।।
भागे बहुत दूर मन -शंका।जलती रहे रावणी-लंका।।
सुन्दर मानव हमें बना माँ।गीता का अभ्यास करा माँ।।
हंसारूढ चली आ घर में।दिव्य भाव बन बैठ उदर में।।
यही सांत्वना हमें चाहिये।करुणामृत रस बनी आइये।।


सुन्दर प्रतिमा आपकी दिखे निरन्तर नित्य।
कल्याणी माँ शारदा एक मात्र अति स्तुत्य।।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


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