डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"मेरी पावन मधुशाला"


ब्राह्मण संस्कृति के प्रतीक सा सदा चमकता है प्याला,
ब्राह्मी आसव जैसी औषधि जीवदायिनी सी हाला,
ब्रह्म सरीखा त्रय-लोकी सम दृश्यमान मेरा साकी,
ब्रह्मलोक से आच्छादित है मेरी पावन मधुशाला।


सत्व धर्म का पालक जैसा अति सात्विक निज का प्याला,
सात्विकता की मादकता से ओत-प्रोत मेरी हाला,
सत्युग धर्म कर्म से भूषित मेरा सतमय साकी है,
सात्विक शाकाहार सदन सी मेरी पावन मधुशाला।


सत्य पंथ के संकेतों को बता रहा मेरा प्याला,
सत्यपन्थ की अति दीवानी है मेरी सच्ची हाला,
सत्यपंथ के स्वयं पथिक सा घूम रहा मेरा साकी,
सच्चाई की निज बाहों में खेल रही है मधुशाला।


सुन्दर मोहक सुखद प्रथा का वाहक है मेरा प्याला,
उपयोगी कल्याणी भावों से निर्मित मेरी हाला,
अमर प्रथा का शास्त्र प्रणेता मेरा अनुपम साकी है,
दिव्य प्रथा की सहज प्रचारक मेरी पावन मधुशाला।


दिनकर बना खड़ा दिखता है मेरा ज्ञान सदृश प्याला,
अति प्रकाश की पुंज सरीखी है आलोकित मम हाला,
बन प्रकाशमान चमकीला थिरक रहा प्रिय साकी है,
बनी सौर -मण्डल -आभा सी चमक रही है मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...