"श्री प्रीति महिमामृतम"
प्रीति अमृता है जहाँ वहीं स्वर्ग सोपान।
बसा हुआ है प्रीति में सुन्दर सिद्ध सुजान।।
प्रितिमयी दुनिया बन जाये।देव गंग में नित्य नहाये।।
बेहद मानव मन चंगा हो।दिल में बैठी शिव गंगा हों।।
कपट वृत्ति सब जल-गल जायें।साफ-स्वच्छ हर मन हो जाये।।
शंकाओं का भंजन होगा।असुरों का नित मर्दन होगा।।
सघन वृक्ष की छाया होगी।प्रकृति प्रदत्त शिव काया होगी।।
चढ़ जाये उल्लास हृदय में।वृद्धि सतत उत्साह प्रणय में।।
प्रीति -भाष की संस्कृति होगी।सुन्दरता की आकृति होगी।।
बढ़-चढ़कर प्रिय बातें होंगी।मधुर मधुरिमा रातें होंगी।।
स्वर्ग बनेगा यह जग सारा।सबकुछ उत्तम अति प्रिय न्यारा।।
सभी प्रितिमय नित बनें करें प्रीति रसपान।
सुन्दर मानव सा सजें खिलें भरें मुस्कान।।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
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