"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
माँ का ही अस्तित्व है जग को मिथ्या जान।
अखिल निखिल ब्रह्माण्ड में केवल माँ भगवान।।
माँ ही रहती है सत्ता में।कण-कण में पत्ता-पत्ता में।।
सकल सृष्टि है मात्र तुम्हीं से।तेजपुंजमय सिर्फ तुम्हीं से।।
तू ही सबकी शोकहारिणी।भयविनाशिनी सदाचारिणी।।
हितवादी सम्बन्ध तुम्हीं हो।विद्यामय अनुबन्ध तुम्हीं हो।।
है विवेक का हंस प्रतीका।ज्ञान सिन्धु है ग्रन्थ अनेका।।
वीणा की झंकार तुम्हीं हो।सम्पूर्णा-ओंकार तुम्हीं हो।।
श्वेत -वसन सात्विक श्रद्धास्पद।हरती रहती हो भय-आपद ।।
कारण-कार्य जनक-जानकी।बातें प्रति पल सत्य ज्ञान की।।
करुणामयी नित्य अविकारी।हरो क्लेश सब हे महतारी।।
शान्त मेघदूत बन बरसो।प्रेम-ज्ञान-भक्ति नित परसो।।
साथ तुम्हारा मात्र चाहिये।तुझसा दीनानाथ चाहिये।।
प्रेम पंथ हम नित गहें रहें तुम्हारे संग।
हे माता प्रिय शारदे!कर पावन सब अंग।।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
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