"सेवा मेँ आनन्द- दृष्टि हो"
सेवा में आनन्द खोजिए,
प्रेम समर्पण ज्ञान खोजिए,
सेवक बनना सर्वोत्तम है,
मधुर-मिलन-मुस्कान खोजिए।
सेवा में आनन्द-दृष्टि हो,
सहज प्रेम की सदा वृष्टि हो,
सुख की चाहत में हो सेवा ,
सहजानन्दी सकल सृष्टि हो।
बन जाओ रविदास सन्त सम,
करते जा कबीर सा उद्यम,
छोटा नहीं जगत में सेवक,
निष्कामी सेवक सर्वोत्तम।
सदा समर्पण भाव निराला,
पी भावुकता का मधु-प्याला,
शोषण करना त्याग निरंकुश,
बन जा सबके उर की माला।
सेवा-व्रत ही हो संकल्पित,
जीवन हो सेवा-अभिकल्पित,
सेवा सबसे बड़ा धर्म है,
सेवा पावन क्रिया प्रकल्पित।
सेवा में अमरत्व छिपा है,
सेवा में व्यक्तित्व छिपा है,
सेवा से ही मिलता जीवन,
सेवा में सर्वस्व छिपा है।
सेवा तत्व दिव्य अविनाशी,
सेवामय हैं शिव-कैलाशी,
सेवक बनना सीखो मित्रों,
सेवा अतमपुरी निवासी ।
सेवा गूढ़ रहस्य जीवन का,
सेवा पुष्प गुलाब चमन का,
सेवा को ही मिशन मान लो,
सेवा ज्योतिपुंज उर-मन का।
नमस्ते हरिहरपुर से--डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
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