"श्री सर्वार्थसाधिका"
दिव्य ज्ञान स्रोत सिंधुमय
आत्म ज्ञानिनी महा बोधमय
महा पराकाष्ठा सुबाहु शिव
परम विराट अमी सुध उरमय।
तुम्हीं चन्द्रमा दिव्य शीतला
अद्भुत अद्वितीय कोकिला
मानसरोवर हंसमयी नित
पयोधरी विद्यामृत कपिला।
सत्य सत्व सुन्दर शुभ सरबस
सत्यार्थी स्वामिनी सन्तवश
गगन विराट ब्रह्ममय मनसा
वागधीश्वरी शान्त सौम्य रस।
दिव्य वर्णनातीत अकथ नित
सहज साधिका माँ सबका हित
महा जननि यश-जीवन दात्री
माँ-अवतरण सरस्वति परहित।
चैत राम नवमी माँ तुम हो
शिवा स्वरूपिणि सज्जन तुम हो
पावन दिव्य भाव बन रहती
साधु हृदय में बैठी तुम हो।
महा अनन्ता सविता सागर
दृढ़ प्रतीज्ञ सुदृढ़ हिम नागर
ब्रह्म नियंता सर्वोपरि तुम
विश्व -पाणिनी संस्कृत आखर।
अतिशय शुचिता सर्व साधिका
वृंदावन में कान्हा-राधा
सम्मोहन के चरम कोण पर
तुम साहित्य सुगम्य नायिका।
मातृ शारदे का नित वन्दन
करें सभी माँ का अभिनन्दन
तुम्हीं शीतला शान्ता हिममय
प्रार्थनीय माँ अति आनंदन।
नमस्ते हरिहरपुर से--
-डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें