डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"जीवन"


जीवन कैसा है, इस पर विचार मत कीजिये,
जैसे चल रहा है, वैसे ही इसे चलने दीजिये ।


सोचेंगे तो परेशान  होते रहेंगे,
सुख और दुःख में जीते रहेंगे।


न सोचना ही निर्वात है,
सोचना आत्मघात है।


सोचकर हम प्रपंची बन जाते हैं,
न सोचकर हम आजाद पंछी हो कर उड़ जाते हैं।


जो सोचा, वह फँसा.,
न सोचनेवाला हँसा।


जिसमें लाभ हो वही कीजिये,
सोचकर खुद को वर्वाद मत कीजिये।


सोचना हो तो आजादी की सोचो,
मत आपाधापी की सोचो।


सोच में आत्मोद्धार हो,
सबकुछ सहज स्वीकार हो।


अच्छे-बुरे की सोच ही वंधन है,
एक अनावश्यक क्रंदन है।


निर्लिप्त और उदास बनो,
स्वतंत्रता की आस बनो।


वंधनों से मुक्ति चाहिये,
मोक्ष की सूक्ति चाहिये।


परिन्दा सा विचरण करो,
उसके आदर्श का अनुगमन करो।


सुख-दुःख में लालच है,
हर दशा में अपच है।


निर्द्वंद्वता के लिये जीवन की सोच छोड़ दो,
कछुए की तरह हर तरफ से मूँह मोड़ लो।


सफलता मिलेगी,
जिन्दगी खिलेगी ।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


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