डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"परम तत्व को मित्र बनाओ"


            (वीर छंद)


मन के कपट-मैल को त्याग, मित्र बनाओ परम तत्व को.,
परम तत्व ही असली मीत,यही करेगा साफ-सफाई.,
इसको ही तुम साबुन जान, दूषित मन को स्वच्छ बनाता.,
मन के रहता जब ये संग, कभी न गर्दा पड़ने देता.,
करता रहता हरदम  साफ, मन के म्लेच्छ भाव का मारक.,
परम दिव्य यह दैवी शक्ति, पावन करता मनः क्षितिज को.,
पावन मन की स्थिति प्यार, करने लगती सकल भुवन से.,
नहीं किसी से कभी दुराव,सब हो जाते उसके अपने.,
करने लगता सबसे प्रीति, हाथ जोड़ नतमस्तक होकर.,
सत्संगति का दिव्य प्रभाव, मनोदशा को निर्मल करता.,
सकल लोक में सहज महान, परम तत्व प्रिय सर्वगुणी है.,
मानवता का व्याख्याकार, स्वर्गमयी संसार रचयिता.,
खुद का अपना रचनाकार, बना हुआ है स्वयं स्वयंभू.,
सर्वोपरि यह शक्ति महान, नव दुर्गा का विविध रूप यह.,
यह लेता रहता अवतार, राम कृष्ण शिवशंकर बनकर.,
यह सीता राधा का रूप, धारण करता समय समय पर.,
इसकी महिमा अपरंपार, नहीं समझ पाते सब इसको.,
ब्रह्म तत्व यह तत्व महान, इसे समझना बहुत सरल है.,
रख इसमें श्रद्धा विश्वास, कभी न तोड़ो इससे नाता.,
यह अतिशय है भावुक शक्ति, विनय भाव से सर्व सुलभ है.,
इससे जिसने किया है प्यार, वही बना है महा मनीषी.,
परम तत्व है धर्म समान, मन में इसको नित धारण कर.,
बन जाओगे सहज सुजान, इसमें कुछ सन्देह नहीं है.,
हो जायेगा रोशन नाम, याद करेगी दुनिया सारी.,
मिल जायेगा शिव अमरत्व, जीवन का अंतिम मुकाम यह.,
बचता नहीं है कुछ भी शेष, यह अंतिम सोपान अनन्ता.,
बन जाओगे विश्व महान, रच- बस जाओगे कण-कण में.,
कभी गगन में कभी पाताल, कभी भूमि के प्रति रज-अणु में.,
उच्च शिखर पर द्रष्टा भाव, चढ़ जायेगा बना ब्रह्म इव .,
सुन लो यह सन्देश महान, यह अनुभव अद्यतन निरापद.,
यह अनुभव मेरे अनुसार, अच्छा लगे तभी स्वीकारो.,
बुरा लगे तो चित से उतार, क्षमा याचना तव चरणों में.,
मैँ हूँ सकल विश्व का मित्र, निभा रहा हूँ मित्र धर्म यह.,
हर मानव का हो कल्याण, इससे अच्छा और नहीं कुछ.,
सुन्दर मानव का हो विश्व, यह पावन संकल्प पूर हो.,
सब मानव में हो सद्भाव, परम तत्व की कृपा दृष्टि हो।


नमस्ते हरिहरपुर से--


-डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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