"श्री प्रीति महिमामृतम"
प्रीति -रसामृत सिद्ध अति सगुण हृदय-उद्गार।
इसके सेवन मात्र से मन होता उजियार।।
चलो प्रीति के संग-संग नित।देखो सबका अपना भी हित।।
प्रीति तरंगों में बह जाओ।मल-मलकर मन को नहलाओ।।
करना है रसपान प्रीति का।करना है गुण गान प्रीति का।।
सिर्फ प्रीति का साथ चाहिये।प्रेम-वृक्ष की छाँह चाहिये।।
जहाँ प्रीति है वहीं ईश हैं। परमेश्वर जगदीश वहीं हैं।।
मोहित होना हर मानव पर।करना कृपा सभी मानव पर।।
बन सहयोगी साथ निभाना।सबको पुष्प-माल पहनाना।।मत बनना तुम कभी विरोधी।बनते जा दुर्गुण-प्रतिरोधी।।
सन्त-हृदय जैसा बन जाना।प्रीति परस्पर गीत सुनाना।।
सबके हित की बातें करना।सबके दिल में बैठे रहना।।
दुश्मन को भी मित्र समझना।प्यारे!बनकर इत्र महकना।।
नहीं किसी को दुःख पहुंचाना।सत-प्रिय बातें करते जाना।।
सहलाओ नित सबके उर को।निर्मल रखना अन्तःपुर को।।
मनसा वाचा और कर्मणा।सबके प्रति हो हृदय-अर्पणा।।
सबसे शुभ संवाद हो भीतर से अनुराग।
स्नेह-प्रेम-ममता सहज में ही हो सहभाग ।।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
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