"श्री सरस्वती अर्चनामृतम"
प्रीति परस्पर का सदा हे माँ दे वरदान।
एक भाव से हम करें मानव का सम्मान।।
सदा प्रीति रस मेघ बनी आ।माँ उर में आकर बस छा जा।।
करें सदा हम सेवा जग की।करें भलाई प्रति पल सबकी।।
बंध जायें हम मानवता से।सहज प्रेम हो नैतिकता से।।
मन की ग्रन्थि घुला दे माता।कुत्सित भाव सुला हे दाता।।
दिनोँ का उपकार करो माँ।फँसे हुए को पार करो माँ।।
सन्तप्तों को शीतल कर माँ।मीन-नीर को विलग न कर माँ।।
स्वर्ग बने भू-मण्डल सारा। बने आपसी प्रेम पियारा।।
वरदानी हे सर्वसाधिके।बनकर आओ प्रिये राधिके।।
कान्हा का संसार चाहिये।कृष्ण-राधिका प्यार चाहिये।।
सुन्दर संतानों को रच दे।वर वर दे मातृ शारदे।।
प्रेममयी हो सारी दुनिया।स्नेहिलता बन जाये मनिया।।
दिल से दिल के तार जोड़ दो।सबपर अपना प्यार छोड़ दो।।
सुन्दर मोहक भाव का हो सारा संसार।
रचें बसें सबमें सभी मिले सभी का प्यार।।
नमस्ते हरिहरपुर से---डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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