डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"कविता बहती"


कविता कहती बहती चलती,
लिख ना लिखती उठती खुद ही,
परेशान न होवो सुनो कवि जी,
मैँ स्वयं उठती खुद ही बनती।


मैँ स्वतंत्र शिरोमणि नारि-कला,
मुझको मत जान कभी अबला,
मैँ सशक्त सहस्रभुजा प्रबला,
अमरावति अमृत -पय सबला।


जिसपर खुश होती हूँ जान उसे,
वह विश्व गुरू बन जात तभी,
मैँ छुपी रहती अति सज्जन में,
अति कोमल में अति भावुक में।


मैँ हूँ भाव स्वयं में विचार स्वयं,
मुझको समझो आवेश स्वयं,
बहती मैँ धरा पर देख दशा,
चलती रहती बहती हूँ स्वयं।


मैँ चतुर्दिक घूमत देखत सब,
लिखती खुद हूँ मैँ अनन्त शवद,
कुछ भी नहिं बचता है शेष यहाँ,
सब उड़ेलत जात स्वयं कविता।


मैँ बनी सरिता शुभ चिन्तक सी,
जग को रसपान कराती सदा,
चलती चल जात बिना रुकते,
बहती रहती कवि के उर में।


नमस्ते हरिहरपुर से---


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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