"श्री प्रीति महिमामृतम"
प्रिया पुनीता प्रियतमा प्रीति परस्पर प्राण।
स्नेह सहज सरलामृता सरस सलिल सम्मान।।
नित बरसत अमृत रस वाणी।तृप्त होत जगती का प्राणी।।
सबके उर में अमृत धारा।पाता सुख सारा संसारा।।
शुष्क भूमि में बीज अंकुरण।होत विशाल वृक्ष शीतलपन।।
प्रमुदित तन मन जन अविकारी।अति उत्साह उमंग सुखारी।।
बसत हृदय में सात्विक चंदा।अति निर्मल अति सुन्दर वन्दा।।
वन्दनीय मृदु मोहक मनसिज।होत न मन विकारमय हरगिज।।
एकीकृत होता जग मधुवन।सर अंश सम्मत जग उपवन।।
सबके मन का बनत समुच्चय।सब बनने को आतुर अमिमय।।
सबमें प्रेम प्रवाह गनगमय।सब होते सुविचार सजनमय।।
कामवासना भस्मीभुता।सभी कृष्ण राम अवधूता।।
सब माया से मुक्त उदासी।बनकर जीते प्रितिनिवासी।।
रस प्रधान प्रीति जग यह हो।यही दिव्य रसधाम सुबह हो।।
प्रीति रसामृत सब चखें बढ़े सभी में चाह।
प्रीति गंग सागर बहे सबमें सहज अथाह।।
नमस्ते हरिहरपुर से ---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
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