"मेरी पावन मधुशाला"
काव्य भाव की मधुर निराली दिव्य छटा सी है हाला,
करता है मधुपान निरन्तर मधु- सेवी पीनेवाला,
कविता का प्याला दिखलाता बड़े प्रेम से साकी है,
बनी हुई है काव्य मंडली जैसी मेरी मधुशाला।
भावों में ही बह जाने को सदा समर्पित है प्याला,
मधुरिम भावों की मादकता से नहलाती है हाला,
मधुराकृति में मजेदार मह महा महकता मधु साकी,
महानायिका मधुभावों की अद्य बनी है मधुशाला।
प्यास निरन्तर बुझ सी गयी है वह संतृप्त योग-प्याला,
जग की प्यास बुझाने आयी है मेरी हाला,
सकल विश्व की भूख-प्यास को सदा मिटाता साकी है,
सहज तृप्ति की चाह जिसे हो आये मेरी मधुशाला।
है अनन्त का यात्री बनकर निकल पड़ा मेरा प्याला,
है अनन्त की शैर कराती यान सदृश हृद-मधु हाला,
है अनन्त के अंतरिक्ष पर खड़ा देखता जग साकी,
अंतरिक्ष के महा शून्य की महा-मंडली मधुशाला।
सबसे ऊँचा विश्व शिखर पर खड़ा सभ्य सम प्रिय प्याला,
वैश्विकता की मधु-मानवता हेतु रचित वैश्विक हाला,
सबसे ऊपर विश्व-ध्वजा ले फहराता मधुमय साकी,
सहज अलौकिक वैश्विकता की जग -जननी है मधुशाला।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9738453801
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