डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।

"मेरी पावन मधुशाला"


सच्चाई की चाह जिसे हो वह कर में ले मेरा प्याला,
चुमचाट कर आनन्दित हो जसमें बहती मृदु हाला,
सच्चाई का अर्थ बताता फिरता मेरा साकी है,
सच्चाई से प्रेम जिसे हो आये मेरी मधुशाला।


प्रेम -मूल्य को दिल में रखकर घूम रहा मेरा प्याला,
बैठी रहती सात्विक भावों सी जिसमें मधुरिम हाला,
सदा प्रेम की शिक्षा देता कान्हा सा मेरा साकी,
प्रेमालय सी परम धाम है मेरी पावन मधुशाला।


बना भक्त पीनेवालों का कर की शोभा है प्याला,
भक्तिदायिनी मादकता का मंत्र बताती है हाला,
भक्तों का आकर्ष -केंद्र बन बुला रहा सबको साकी,
भक्तिभाव की जिसे चाह हो आये मेरी मधुशाला।


अमर ज्ञान के लिए बना है मेरा सहज ज्ञान प्याला,
भरी हुई है पूर्णरूप से जिसमें सुन्दर सोच सदृश हाला,
समझदार अति उत्तरदायी पीनेवालों का साकी,
विश्वभारती बनी हुई है मेरी पावन मधुशाला।


यदि तुझको वैराग्य चाहिये लो तुरन्त कर में प्याला,
वैरागिन का जीवन जीती प्रेममदिर सात्विक हाला,
वैरागी का देश बसाता मेरा अति विचित्र साकी,
निर्मोही निर्लिप्त उदासी एक रसामृत मधुशाला।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।


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