"संकल्प में समाधि की तलाश"
आँसुओं से मधुर विश्व बनता रहे
विश्व में आत्म का बोध होता रहे
आत्म ही सत्यमय सच्चिदानंद है
विश्व में सत्य का वृक्ष उगता रहे।
शुष्क में भी सरसता की धारा बहे
पर्वतों में हिमालय की पिघलन रहे
आज का आदमी चेतना शून्य है
कल का मानव महाप्राण बनकर बहे।
हस्तियों का दनुज बह निकलता रहे
शक्तियों में क्षमा का विचरना रहे
आज का विश्व मानव भले हो दुःखी
कल का मानव चमकता चहकता रहे।
दुर्भाग्य मानव के पद-तल रहे
सबका सौभाग्य स्थिर अचल दल रहे
भाग्य ही कर्म अरु कर्म ही भाग्य है
विश्व के भाग्य में शुभ सुखद कल रहे।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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