"मेरी पावन मधुशाला"
अंतस की ही सकल संपदा सदा देखता है प्याला,
व्यापक उर की प्रिया दिव्यता के वाष्पों की है हाला,
तीन लोक से न्यारे अन्तःपुर का दिग्दर्शक साकी,
पावन अन्तर्जग सी पावन मेरी पावन मधुशाला।
पारसनाथ विश्वनाथ की नगरी का मेरा प्याला,
बम बम बम बम सदा टेरती है मेरी पावन हाला,
शिव शिव शिव शिव कहते कहते शिव जिमि बन जाता साकी,
शिवशंकर की पावन नगरी शिवकाशी सी मधुशाला।
काशी के पावन मनभावन सा प्रिय पावन है प्याला,
काशी की मधुमय शिवता से बनी हुई मेरी हाला,
कालेश्वर श्री महादेव सा दयासिन्धु मेरा साकी,
रामेश्वर श्री महा धाम सी मेरी पावन मधुशाला।
काशी पंचक्रोश के यात्री सा चलता मेरा प्याला,
हर हर महादेव का नारा रोज लगाती है हाला,
सह-यात्री बन रामचन्द्र जी चलते दिखते साकी सा,
पँचक्रोशियों की टोली सी मेरी पावन मधुशाला।
काशीवासी रमते रहते बोला करते शिव -प्याला,
शिवमय मधुमय भंग जमाये बोल रहे हाला-हाला,
चेतन प्रभु सा ढोल बजाता मस्त फकीरा सम साकी,
मस्तानी शिवकाशी महिमा गाया करती मधुशाला ।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
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