"आत्म मंथन "
अंतस्थल ही सिन्धु सरीखा,
भीतर बैठा रत्न समुच्चय,
मथते रहना मथना सीखो,
मंथन से ही सबकुछ संभव।
जिसने खोजा मिला उसी को,
चुप जो बैठा पाया वह क्या?
करो परिश्रम मन से मित्रों!
बुद्धि -योग से मिल जाता सब।
करना अपना ही विश्लेषण,
चलते रहना करते चिन्तन,
कभी न थकना पार्थ नित्य बन,
आजीवन करना अन्वेषण।
आत्म विवेचन करते जाना,
मन में चाह स्वयं को पाना,
इधर-उधर मत भटको वन्दे,
एक राह पर जाना-आना।
अपनी त्रुटियाँ नित्य ढूढना,
बाहर से अच्छाई लेना,
सुन्दरता में रत्नाकर हैं,
रत्नाकर को ईश समझना।
रहना सीखो अन्तःपुर में,
अन्तःपुर के हरिहरपुर में,
हरिहरपुर में क्षीर-सिन्धु है,
अमृत खोजो क्षीरेश्वर में।
ज्ञानार्थी यह भंडारण है,
इसमें लक्ष्मीनारायण हैं,
यह पुरुषार्थ चतुष्ठय आतम,
काम मुक्त यह शिव गायन है।
ध्यान मग्न हो चित्त लगाओ,
शुक्ष्म रूप धर रच -बस जाओ,
बन विदेह आत्म का वासी,
देख रत्न रत्न बन जाओ।
नमस्ते हरिहरपुर से---
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी ।
9838453801
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