*कागजी फूलों सा दिखावटी*
*इंसान हो गया ।।।।।।।।।।।*
*।।।।।।।।।मुक्तक।।।।।।।।।।।*
कागजी फूलों जैसी आदमी
की सीरत हो गई है।
जबानी खोखली सी आदमी
की कीरत हो गई है।।
आदर, सदभाव, प्रेम , स्नेह
हो गई हैं किताबी बातें ।
चमक पैसे की आदमी का
नया तीरथ हो गई है।।
*रचयिता।।।।।एस के कपूर श्री*
*हंस।।।।।।।बरेली।।।।।।।।।।।*
मोब 9897071046।।।।।।।
8218685464।।।।।।।।।।।।।
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