ग़ज़ल (हिंदी)
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उतर आयी ग़जल देखो हमारे गांव शहरों से ।
अदब हमको सिखाएगी निकलकर मूक वहरों से ।।
गरीबी भुखमरी भी देखकर सजदा करेंगी अब ,
मिटेगी प्यास जब उनकी नवेली आब नहरों से ।
परिंदे भी तसल्ली से करेंगे लूट पानी की ,
अभी तक ले रहे थे आसरा जो कूप ढहरों से ।
सिसकती जिंदगी भी खिलखिलाकर बोल पाएगी ,
निकलआएगी वो बाहर कड़े गुरबत के पहरों से ।
जहां बचपन बिलखता भूख से देखा जमाने ने ,
बचाएगी ग़जल मेरी उन्हें जालिम के कहरों से ।
सही मुद्दे पे लिखता हूँ ग़जल को आम भाषा में ,
नहीं है दुश्मनी मेरी अरब फारस की बहरों से ।
अदीबों की नयी पीढ़ी से "हलधर "की गुजारिश है ,
मुखौटे जो बदलते हैं बचो उन फेक चहरों से ।
हलधर -------9897346173
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