हलधर

कविता - कोरोना से लड़ना होगा 
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कोरोना से लड़ना होगा , भीड़ भाड़ से बचना  होगा ।
बीच राह में यह मत पूछो ,कितनी मंजिल और बची है ?


हम सब एक डगर के राही ,साथ साथ सबको चलना है ।
तपती धरती की छाती पर ,  हमको गलना या जलना है ।
भीड़ भाड़ का कफनओढ़कर , दानव घूम रहा बन ठनकर ,
मौत सहेली से मत पूछो ,कितनी मलमल और बची है ?1


विष कण हमें डराने आया , छोटा मोटा कीट मान कर।
पूरी दुनियां में यह छाया   , डरे हुए सब देश जान कर।
शुरुआत के संक्रमण  में , बैठे रहे देश कुछ  भ्रम में ,
मरघट उनसे पूछ रहा अब,कितनी हलचल और बची है ?2


राजा आज बना बैठा है  , सकल विश्व का यह कोरोना ।
जीवन लीला के उपक्रम में , आदम भी दिखता है बौना।
अब भी मौका कर्म सुधारो ,आने वाला जन्म सुधारो ,
कीचड़ में घुस यह मत पूछो ,कितनी दलदल और बची है ?3


लख चौरासी जन्म हुए हैं ,तब यह मानस देह मिला है ।
अच्छे कर्मों के बदले में  , भारत माँ का नेह मिला है ।
भारत ही इससे जीतेगा  , "हलधर"बुरा समय बीतेगा ,
रात ठिठुरती से मत पूछो ,कितनी कम्बल और बची है ?
बीच राह में यह मत पूछो ,कितनी मंजिल और बची है ?4


हलधर-9897346173


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