हलधर

सरस्वती वंदना 
-----------------


हे  मात शारदा तू मुझ पर ,इतनी सी अनुकंपा कर दे ।
वाणी से जग को जीत सकूँ ,मेरे गीतों में लय भर दे ।।


शब्दों छंदों का भिक्षुक हूँ ,मैं मांग रहा कुछ और नहीं ।
जाने कब सांस उखड़ जाय ,जीवन की कोई ठौर नहीं ।
मेरी छोटी सी चाह यही ,धन दौलत की परवाह नहीं ,
इस शब्द सिंधु को पार करूँ ,उन्मुक्त कल्पना को पर दे ।।


कलियों के हार बनाये हैं , तुझको पहनाने को मैया ।
 फूलों से रस खिचवाये हैं ,तुझको नहलाने को मैया ।
खिड़की दरवाजे छंद कहें ,दीवारें गीत ग़ज़ल गायें ,
तुलसी की चौपाई गूँजें ,ऐसा मुझको सुरभित घर दे ।।


काया ये मांटी का पुतला ,मानव औ पशु में अंतर क्या ।
वाणी बिन पता नहीं चलता ,गाली या जंतर मंतर क्या ।
पूरी अब खोज करो मैया ,वाणी में ओज भरो मैया ,
गूजूं मैं दसों दिशाओं में ,मैया मुझको ऐसा वर दे ।।


दिनकर जैसा कुछ लिख पाऊँ ,मुझको वरदान यही देना ।
जन गण के ओज गीत गाऊँ ,मुझको अनुमान सही देना ।
तेरे चरणों में बिछ जाऊँ , धरती से नभ को खिंच जाऊँ ,
दुनियाँ में गीत अमर होवें , "हलधर" को ऐसे अक्षर दे ।।
हे मात शारदा तू मुझ पर ,इतनी सी अनुकंपा कर दे ।।।।


हलधर - 9897346173


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...