हलधर

कविता -जागो रे 
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देश तोड़कर शासन करना ,जिनका कारोबार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।


अहंकार में झूल रही है ,पी पी खून देश का खादी ।
करतब इनके देख देख कर,राजघाट में रोते गाँधी ।
 यमुना जल भी  लाल हुआ रे ,शोणित के छूटे फब्बारे ,
आतंकों का ओढ दुशाला  , दानव पैर पसार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।1


गंगा सिसक सिसक रोती है ,यमुना अब मैला ढोती है ।
जागो जागो देश वासियों , दिल्ली अब आपा खोती है ।
धरा पूत अर्थी पर लेटा , सर हद पर उसका ही बेटा ,
संसद के संवाद देख कर ,संविधान धिक्कार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।2


अगर अभी हम नहिं सँभले तो ,देश  हमारा बँट जायेगा ।
भाई के हाथों भाई का , गला एक दिन कट जायेगा ।
लाल रंग के वस्त्र पहनकर ,डायन धूम रही बन ठन कर ,
एक पड़ौसी विषधर फिर से , सरहद पर फुंकार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को, कवि उनको ललकार रहा है ।।3


चीन हमारा जानी दुश्मन ,समझो उसको कभी न भाई ।
कीमत बड़ी चुकानी होगी , गलती यदि हमने दुहराई ।
कुछ माओ को खास बताते ,लेनिन की तस्वीर सजाते ।
अपनो के ही हाथों "हलधर ",भारत घर में हार रहा है ।
कलम उठी कविता लिखने को ,कवि उनको ललकार रहा है ।।
हलधर --9897346173


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