कुण्डलियां
◆आँधी ऐसी है चली,सब करते हैं शोर।
छूट रही हर हाथ से,निश्चित कच्ची डोर।
निश्चित कच्ची डोर, मनुज अन्तर घबराता।
रहा किनारा पास, डूब फिर भी वह जाता।
मधु कहती यह बात, बनो अब भी सब गाँधी।
सत्य अहिंसा साथ, कहाँ फिर आए आँधी।।
◆बाधा सारी तोड़ के, जो नर जाता जान।
सारे धन से श्रेष्ठ है, जीवन पथ का ज्ञान।
जीवन पथ का ज्ञान, यही संज्ञान कराए।
थकने से है हार, शक्ति नव राह सजाए।
मधु कहती यह बात,जिओ मत अब तुम आधा।
शक्ति पताका साथ,तोड़ दे सारी बाधा।।
*©मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
*03.03.2020*
🌹🌹सुप्रभातम्🌹🌹
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