जसवीर हलधर -9897346173

ग़ज़ल (हिंदी )
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दीप की लौ है अधूरी तम उसे भरमा रहा है ।
सूर्य के हस्ताक्षरों पर धुंध कुहरा छा रहा है ।


हर सुबह तेजाब डूबी रक्त रंजित शाम देखो ,
बागबां देखो चमन से अधखिले गुल खा रहा है।


मज़हबी आलेख अंकित है यहां सब चैनलों में ,
सुर्ख है अखबार सारे कौन लिखकर ला रहा है ।


देवता मूर्छित हुए  अब  मूक है सब प्रर्थनाएँ ,
शोकपत्रों पर विजय के गीत कोई गा रहा है ।


किस समय में जी रहे हम कौन है इसका रचियता ,
कौन अक्षत थाल, रोली ,पुष्प ,को ठुकरा रहा है ।


लोग अंधे हो रहे हैं मजहबी चश्मा पहनकर ,
 मस्जिदों में कौन है जो कौम को भटका रहा है ।


अब यहां गांधी नहीं जो शांति का पैगाम लाये ,
कौन है जो देश को इस नाम  से फुसला रहा है ।


नागरिक समता हमारे राष्ट्र का आधार है तो ,
 कौन इसकी राह में रोड़े यहाँ अटका रहा है ।।


नागरिक कानून को जो तूल इतनी दे रहा है ,
घाव पर मरहम उसे "हलधर"नहीं क्यों भा रहा है ।


             हलधर -9897346173


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