ग़ज़ल (हिंदी )
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दीप की लौ है अधूरी तम उसे भरमा रहा है ।
सूर्य के हस्ताक्षरों पर धुंध कुहरा छा रहा है ।
हर सुबह तेजाब डूबी रक्त रंजित शाम देखो ,
बागबां देखो चमन से अधखिले गुल खा रहा है।
मज़हबी आलेख अंकित है यहां सब चैनलों में ,
सुर्ख है अखबार सारे कौन लिखकर ला रहा है ।
देवता मूर्छित हुए अब मूक है सब प्रर्थनाएँ ,
शोकपत्रों पर विजय के गीत कोई गा रहा है ।
किस समय में जी रहे हम कौन है इसका रचियता ,
कौन अक्षत थाल, रोली ,पुष्प ,को ठुकरा रहा है ।
लोग अंधे हो रहे हैं मजहबी चश्मा पहनकर ,
मस्जिदों में कौन है जो कौम को भटका रहा है ।
अब यहां गांधी नहीं जो शांति का पैगाम लाये ,
कौन है जो देश को इस नाम से फुसला रहा है ।
नागरिक समता हमारे राष्ट्र का आधार है तो ,
कौन इसकी राह में रोड़े यहाँ अटका रहा है ।।
नागरिक कानून को जो तूल इतनी दे रहा है ,
घाव पर मरहम उसे "हलधर"नहीं क्यों भा रहा है ।
हलधर -9897346173
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