जसवीर हलधर देहरादून

गीतिका -होली में
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 कोरोना के भय में भटकी रीत सुहानी होली में।
दिल्ली के  दंगों ने  सटकी प्रीत रूहानी होली में।


केसर घाटी सुलग रही थी पिछले सत्तर सालों से ,
हटी तीन सौ सत्तर धारा नयी कहानी  होली में ।


मांथे का सिंदूर मिट गया जाने कितनी बहनों का ,
मजहब का उन्माद ले उडा नीति पुरानी होली में ।


देश प्रेम का फ़ाग नही है कुर्सी का है राग यहां ,
 नेताओं ने अपनी अपनी चादर तानी होली में ।


ये हलचल ये कोलाहल क्यों सी ए ए पर मची हुई ,
इसको अपनाने में  है क्यों आनाकानी  होली में ।


दुश्मन की धरती पर जाकर हमने बीन बजाई थी ,
नाग सैंकड़ों  बिल में मारे पाकिस्तानी होली में ।


बोतल में तेजाब भरा है रंगों में बारूद घुला ,
पुलिस पिट रही चौराहों क्या नादानी होली में ।


रंग गुलाल लगा कर भाई मुखड़ा दर्पण में देखो ,
सबका चेहरा दिखे तिरंगा हिंदुस्तानी  होली में ।।


राम लला पे हुआ फैसला" हलधर "सबने अपनाया ,
हमने दुनिया को सौंपी है नयी निशानी होली में ।


हलधर --9897346173


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