होली
तर्ज़-मंदरिया में उड़े रे गुलाल
सब खेला लाल गुलाल, होली नित् आवे रे
प्रेम त्याग का रंग लगाओ
राग द्वेष को दूर भगाओ
हो जाओ खुशहाल, होली नित्---
क्रोध, जलन , ईर्ष्या को जलाओ
अपने मन को पवित्र बनाओ
हो जाओ धनवान, होली नित
मंदिर तीरथ क्यों जाते हो
तन को अपने क्यों थकाते हो
मन को मंदिर बनाओ, होली नित
प्यार का रंग पिचकारी में भर लो
सभी पर प्यार की वर्षा कर दो
रह जाए होली याद, होली नित आवे ये
जय श्री तिवारी खंडवा
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
जय श्री तिवारी खंडवा
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