जया मोहन प्रयागराज

लघुकथा
मदद
शीनू का मकान बन रहा था।उसे यह देख करआश्चर्य होता कि महिला मज़दूर सिर पर एक साथ बारह ईट रख कर तिमंजिले तक पहुचाती है।
उसने देखा एक गर्भवती रेज़ा सिर पर बारह ईट रख कर उठने की कोशिश कर रही है।चाह कर भी उठ नही पा रही है।शरीर पसीने से तरबतर हो गया।शीनू को दया आ गयी।शीनू पास जा कर बोली चलो मैं मदद कर दू तुम्हे उठने में।वह ध्यान से शीनू को देखने लगी।उठाने के लिए शीनू ने हाथ आगे बढ़ाया।तभी उसने हाथ जोड़ कर कहा रहने दीजिए।आप दया दिखा कर मुझे बैशाखी पकड़ा रही है।हमे तो पेट पालने के लिये यही काम करना है।हर जगह मुझे कौन सहारा देगा।उसने पूरा जोर लगाया।वह उठ कर धीरे कदमो से आगे बढ़ गयी।उस मेहनतकश ओरत के स्वाभिमान के आगे शीनू नत मस्तक हो गयी।


स्वरचित
जया मोहन
प्रयागराज


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