यादो का गलियारा
आज देश ने स्व्यं को नियंत्रित किया।कॅरोना नाम के वायरस से बचाव के लिए खुद पर कर्फ्यू लगाया
आज की नीरव शांति ने मन को अतीत के गलियारे में पहुँचा दिया। आप धापी की ज़िंदगी मे बेहद शांति ।
पहले पक्षियों का कलरव,कोयल की कूक मन को हर्षित करती थी।
आधुनिक होने पर गाड़ियों के शोर शराबे में सब गुम हो गई थी लगा आज जी उठी।
याद आया गाँवो में इकलौती चक्की की पुकपुक,रहट की आवाज,बैलगाड़ियों की चर्र चू बैलो के गले मे बंधी घंटी की मधुर टुनटुन गाड़ीवान का बैलो को हांकने का हुर हुर सुनाई पड़ जाता था।कभी कभी सड़क से कोई बस गुजरी तो उसके भोपू का पो पो जिसे सुन कर बच्चे दौड़ पड़ते।
शहर व कस्बो में भी कारे बाइक कम थी।मस्तानी चाल से इक्के को खींच रहे घोड़ो के पैरों की टप टप की आवाज कही कही सुदूर रेलवे स्टेशन से रेलगाड़ियों की छुक छुक व सीटी की आवाज।आज बिल्कुल वैसा ही वातावरण है।हमारे बच्चों ने ये सब देखा नही था।आज के दिन उनके लिए खास है।हर चीज सुनने महसूस करनेमे उन्हें नएपन का अहसास हो रहा है।
सबसे बड़ी बात हमने विश्व को दिखा दिया कि हम किसी भी जाति धर्म के हो पर अपने देश पर आयीं विपदाओं का सामना हम मिल कर करते हैं।हम एक थे, हम एक है,हम एक रहेंगे कहते हैसंगठन में शक्ति होती है बड़ो बड़ो का हौसला संगठित शक्ति देख कर टूट जाता है।कॅरोना भी हिन्दुतानियो के बल देख वापस चला जायेगा ।बस हमे अपनी सुरक्षा खुद सतर्क हो कर करनी है।आज बचाव में भी हम अपनी पुरानी परंपरा याद कर रहे दादी माँ कहती बाहर से आकर हाथ धो, नमस्ते राम राम करो,जूठे हाथ से कुछ मत छुओ अब वही करना है।
शाम पांच बजे हर घर की छत से घंटी,घंटा,ताली ,थाली की आवाज आयी तो लगा जैसे सब किसी पुनीत कार्य को मिल कर कर रहे है।इनके सुर मानो कह रहे हो
जीत जायेगे हम
अगर संग है ।
ज़िन्दगी की ये नई जंग है
स्वरचित
जया मोहन
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
जया मोहन प्रयागराज
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