सभी को नमन
ग़म :-
जितना ग़म है साथी,
प्यार बढ़ ही जाता है,
ऐसे जीने पे अपने,
हमको तरस आता है.
मय भी पीता हूँ मैं,
ग़म भी भुला लेता हूँ,
फिर भी बेहोशी का आलम,
तेरे नाम से ही आता है.
तेरा प्यार वादा है क्या, क्यों इतना तड्फाता है? जितना ग़म है साथी,
प्यार बढ़ ही जाता है.
कवि अतिवीर जैन
"पराग "
मेरठ,उ प्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें