कवि अतिवीर जैन पराग, मेरठ

सभी को नमन,


अजीब सनम :-


करती है प्यार भी और नफरत भी,
कभी हँसती औ मुस्कराती है,
कभी बेबात ही रुठ जाती है,
बुन्दा- बादी को बाढ़ बनाती है.
अजीब सनम है मेरी, 
अपनी भी है परायी भी.


कभी पास आने नही देती, 
कभी बिन कहे लिपट जाती है,
चाहती है उससे दूर ना जाऊँ,
पास रहूँ पर पास ना आऊं.
अजीब सनम है मेरी,
अपनी भी है परायी भी.


स्वरचित 
कवि अतिवीर जैन पराग, मेरठ


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