विधाः दोहा
शीर्षकः 👰तन्हाई😢
यौवन सरित उफ़ान पर , मादकता भर नैन।
तन्हाई के दर्द से , सजनी दिल बेचैन।।१।।
अश्क नैन से हैं भींगे , पीन पयोधर गाल।
रूठो मत इतना सज़न , है चितवन बेहाल।।२।।
बाट जोहती श्रावणी , बीता अब मधुमास।
चित्त चकोरी आश में , बरस बुझाओ प्यास।।३।।
तन मन धन अर्पण किया , सजन तुम्हारे नाम।
रनिवासर खोयी सनम , समझ तुझे घनश्याम।।४।।
तड़प रही रति विरहणी, बीता अब मधुमास।
कुटिल हृदय मोहे सजन, तोडा़ दिल विश्वास।।५।।
सोची थी होगा मिलन, आएँगे मनमीत।
भूलूँगी सब वेदना , गाऊँगी मधुगीत।।६।।
क्षमा करो भूलो सनम , लौटो सजनी पास।
सलिल हीन बस मीन सम,तड़पी हूँ हर श्वांस।।७।।
बार बार जलती अनल,सिद्ध करूँ निज प्यार।
एकबार अभिलाष मन ,मिलूँ सजन दिलदार।।८।।
माँग सजाऊँ सजन से , समा प्रीत गल बाँह।
कंठहार प्रिय प्रियतमा , मानो प्रिय मन चाह।।९।।
आलोकित कर प्रीत से,विरह पीड .निशि चन्द।
कर निकुंज कुसमित फलित,प्रेम गंध मकरन्द।।१०।।
तन्हाई साये तले , जीऊँ हूँ दिन रात।
अब न आये तुम सजन , मरकर दूँ सौगात।।११।।
कवि✍️डा. राम कुमार झा " निकुंज "
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
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