कवि✍️डा. राम कुमार झा " निकुंज " रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली


विधाः दोहा
शीर्षकः 👰तन्हाई😢


यौवन   सरित   उफ़ान  पर , मादकता भर नैन।
तन्हाई   के    दर्द  से , सजनी   दिल      बेचैन।।१।।


अश्क   नैन  से  हैं  भींगे ,  पीन   पयोधर गाल। 
रूठो   मत   इतना   सज़न , है चितवन बेहाल।।२।।


बाट    जोहती   श्रावणी , बीता अब   मधुमास। 
चित्त चकोरी आश में , बरस    बुझाओ  प्यास।।३।।


तन मन धन अर्पण किया , सजन तुम्हारे नाम। 
रनिवासर खोयी सनम , समझ तुझे  घनश्याम।।४।।


तड़प  रही रति विरहणी, बीता  अब  मधुमास।
कुटिल हृदय मोहे सजन, तोडा़  दिल  विश्वास।।५।।


सोची  थी    होगा  मिलन, आएँगे      मनमीत।
भूलूँगी    सब    वेदना    , गाऊँगी      मधुगीत।।६।। 


क्षमा करो   भूलो  सनम , लौटो  सजनी   पास।
सलिल हीन बस मीन सम,तड़पी  हूँ   हर श्वांस।।७।।


बार बार जलती अनल,सिद्ध करूँ   निज प्यार।
एकबार अभिलाष मन ,मिलूँ  सजन   दिलदार।।८।।


माँग सजाऊँ  सजन से , समा  प्रीत   गल बाँह।
कंठहार प्रिय  प्रियतमा , मानो प्रिय   मन  चाह।।९।।


आलोकित कर प्रीत से,विरह पीड .निशि चन्द।
कर निकुंज कुसमित फलित,प्रेम गंध मकरन्द।।१०।।


तन्हाई    साये     तले ,  जीऊँ   हूँ  दिन    रात।
अब न आये तुम सजन , मरकर     दूँ  सौगात।।११।।


कवि✍️डा. राम कुमार झा " निकुंज "
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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