💐🙏सुप्रभातम्🙏💐
ममतांचल नित स्वर्ग सम, नेहामृत आगार।
अम्बर से ऊँचा पिता, जीवन का आधार।।
है त्रिदेव से श्रेष्ठतर , हरे तिमिर संसार।
मातु पिता बन मीत गुरु , महिमा अपरम्पार।।
साधु समागम कठिनतर, दर्शन पुण्य प्रदेय।
नमन करूँ माता पिता, चित्त साधु गुरु ध्येय।।
कवि✍️डॉ. निकुंज
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
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