पद्मश्री रेणु : मेरी स्मृति के स्वर्णिम पन्ने
मेरी स्मृति के स्वर्णिम पन्ने,
मचा था उथल पुथल चहुँओर,
सितम्बर माह की पच्चीस तारीख,
यादगार था सन् पचहत्तर
उबल रहा था आक्रोश लोकतंत्र का,
तानासाही निरंकूश सत्ता की खिलाफ़त,
बज चुका था बिगुल महाक्रान्ति का,
हो रहा था दक्षिणपंथी समाजवादी मधुरिम मिलन,
तज रहे थे अपने साथ विद्रोही बने ,
न्याय गेह के कटघरे में फँसी सत्ता,
लाठियों की बरसात के खुल गयी थी तकदीर,
क्या नेता, कवि, लेखक,अभिनेता ,
बच्चे, युवा ,वृद्ध नर, नारी सब चले साथ,
मानो फिर से गुलामी की जंजीरों को
तोड़ने की नौबत आ पड़ी थी।
महानायक बन पुरोधा लोकनायक,
कोटि कोटि जन के साथ जयप्रकाश ,
मैं पूर्णिया जिले के रानीगंज के
लालजी हाई स्कूल का छात्र था,
सरकार विरोधी जुलूस में
स्कूली बच्चों को चलना था,
मेरे हिन्दी शिक्षक कविवर अमोघनारायण झा ,
आ खड़े हुए कक्षा में अचानक ,
साथ में घुंघराले बालों से सुशोभित,
कुरता पैजामा पहने समाजवादी नेता,कवि लेखक
भारत की निरंकूश सत्ता के विरोधी,
अजेय संकल्पित संघर्षक साधक यायावर,
भारत माँ के मैला आँचल को
करने को आतुर निर्मल पावन नित उर्वर,
तीसरी कसम ली परिवर्तन का
तानासाही क्रूर फ़रमानी हुकूमत की ख़िलाफ़त का,
अमोघ बाबू ने कहा हमसे
मेरे मित्र फणीश्वर नाथ रेणु जी आये हैं,
आप सबसे मिलने, मैला आंचल के प्रणेता,
मैंने तीसरी कसम कहानी पढ़ी थी उनकी,
बहुत अच्छी ग्रामीण परिवेश की
व्यथा कथा से गुम्फित मनभावन लेखन,
खुशी का ठिकाना न रहा ,
सामने देख अप्रतिम ग्रामीण क्रान्तिकारी
लेखक चिन्तक या कहूँ निडर सबल नेता,
सबसे मिले ,बातें की, ,चलना था जुलूस में
कर्पूरी ठाकुर जी आनेवाले थे विद्यालय में,
दुःखी भी थे, क्लान्त थे
देश की हिटलरी व्यवस्था से,
रेलमंत्री ललित बाबू मारे गये थे,
समस्तीपुर की सभा में सन् पचहत्तर ,
साथ रहे उस दिन हम सब छात्र
तीन घण्टे से अधिक रेणू जी के,
सौभाग्य था कर्पूरी ठाकुर,
रामसुन्दर दास जैसे सरीखे नेता
आगवानी कर रहे थे जुलूस की ,
गीदड़ गफूर मूर्दावाद ,
कांग्रेस के ये तीन दलाल,
इन्दिरा संजय बंशीलाल ,
के नारों से गुंज रहे थे आसमान,
सिगरेट के धूओं के आगोस में,
सिमटा हुआ रेणु जी का मुखमण्डल,
मानो काली घटा छा गई हो चारों तरफ़,।
बहुत पीते थे सिगरेट अहर्निश
मानों मनप्रीत हो जिंदगी का।
अमोघ बाबू की मित्रता के कारण
अक्सर आते थे हमारे विद्यालय में रेणू जी,
बन गये थे स्कूली जीवन में
प्रेरणास्रोत लेखन के अमिट ,
मेधावी था ,जिज्ञासु था मैं,
सुपात्र बना था उनके स्नेहाशीष का,
मुखर साहसी निर्भय वक्ता फनकार थे रेणु,
सामाजवादी साधक अदम्य प्रखर
सामन्तवादी सोच आलोचक थे रेणु ,
सौम्य सदय मृदुभाषी
आंचलिक बोलियों ,अन्तर्वेदनाओं,
दलितों पीडितों के पैरोकार थे रेणु ,
आंचलिक उपन्यास के प्रस्तोता होता थे रेणु,
सम्पूर्ण क्रान्ति के पूर्णिया प्रमंडल के
नेता, जेता , प्रणेता उद्गाता थे रेणु।
भाग्य था मेरा आशीष था उनका,
बना रेणु तन मण्डित पुलकित मन,
आज भी मेरी स्मृति के स्वर्णिम पन्ने ,
श्री पद्मासन फणीश्वर नाथ रेणु हिन्दीवर,
अविरल निश्छल संकल्पित सारस्वत,
रथी सारथी जीवन रथ संघर्षक यायावर,
है निकुंज नमन श्रद्धा सुमन अर्पण विनत।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली
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