कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली


विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः  भारत की स्वर्णिम धरा
भारत    की   स्वर्णिम   धरा , मानवता      शृङ्गार।
बुरी    नज़र     रखना   नहीं , सुनो     रे     गद्दार।।१।।


तजो    चाल    भष्मासुरी , पाओ     जीवन  दान।
शान्ति   सदय  माँ    भारती , महाशक्ति   तू  मान।।२।।


जन मन तन अर्पित वतन ,  नित   भारत जयनाद।
धीर   वीर   योद्धा    प्रखर , मत     फैला  उन्माद।।३।।


मातृभूमि   उन्नत   सबल , सदा    रहे    खुशहाल।
मातृ शक्ति   निर्भय    सबल , मददगार   बदहाल।।४।।


हो    किसान   उन्नत  वतन , हो जवान   जयगान।
शिक्षा   हो    सब  जन सुलभ , संविधान  सम्मान।।५।।


लोकतंत्र    विश्वास    हो, नित    ज़मीर  हो  साथ।
हर   सन्तति    माँ  भारती , बढ़े  प्रगति पथ  हाथ।।६।।


संकल्पित    विश्वास   मन , बढ़े  सजग    उत्थान।
मनुज     बने   नैतिक  प्रबल , विश्वासी   भगवान।।७।।


बने  सुयश  पथ  सारथी , जीवन   लघु  अनमोल।
अमर गीत     गाएँ   वतन , प्रीति  रंग  मन   घोल।।८।।


रोगमुक्त  जन  धन  वतन, द्वेष  विरत  जन  आम।
हों   सहिष्णु, पर   साहसी , विश्व  अमन    पैगाम।।९।।


रहे तिरंगा शान  जग ,  हरित  शौर्य   सच  शान्ति।
त्याग न्याय जन मन वतन , मिटे  वैर   मन भ्रान्ति।।१०।।


गंगा    यमुना   परम्परा , मधुरिम    स्वर्णिम   देश।
अविचल    हिमवत  भारती , दे    समरस   संदेश।।११।।


स्वच्छ प्रकृति खिलती धरा ,महके  वतन   निकुंज।
कूक सुखद मुस्कान मुख,कोकिल मिल अलिगुंज।।१२।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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