विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः भारत की स्वर्णिम धरा
भारत की स्वर्णिम धरा , मानवता शृङ्गार।
बुरी नज़र रखना नहीं , सुनो रे गद्दार।।१।।
तजो चाल भष्मासुरी , पाओ जीवन दान।
शान्ति सदय माँ भारती , महाशक्ति तू मान।।२।।
जन मन तन अर्पित वतन , नित भारत जयनाद।
धीर वीर योद्धा प्रखर , मत फैला उन्माद।।३।।
मातृभूमि उन्नत सबल , सदा रहे खुशहाल।
मातृ शक्ति निर्भय सबल , मददगार बदहाल।।४।।
हो किसान उन्नत वतन , हो जवान जयगान।
शिक्षा हो सब जन सुलभ , संविधान सम्मान।।५।।
लोकतंत्र विश्वास हो, नित ज़मीर हो साथ।
हर सन्तति माँ भारती , बढ़े प्रगति पथ हाथ।।६।।
संकल्पित विश्वास मन , बढ़े सजग उत्थान।
मनुज बने नैतिक प्रबल , विश्वासी भगवान।।७।।
बने सुयश पथ सारथी , जीवन लघु अनमोल।
अमर गीत गाएँ वतन , प्रीति रंग मन घोल।।८।।
रोगमुक्त जन धन वतन, द्वेष विरत जन आम।
हों सहिष्णु, पर साहसी , विश्व अमन पैगाम।।९।।
रहे तिरंगा शान जग , हरित शौर्य सच शान्ति।
त्याग न्याय जन मन वतन , मिटे वैर मन भ्रान्ति।।१०।।
गंगा यमुना परम्परा , मधुरिम स्वर्णिम देश।
अविचल हिमवत भारती , दे समरस संदेश।।११।।
स्वच्छ प्रकृति खिलती धरा ,महके वतन निकुंज।
कूक सुखद मुस्कान मुख,कोकिल मिल अलिगुंज।।१२।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
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