कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

स्वतंत्र रचना सं. २९०
दिनांकः २५.०३.२०२०
वारः बुधवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
शीर्षकः आराधन नवरात्र का 
चैत्रशुक्ल    शुभ   प्रतिपदा , विक्रम  संवत् वर्ष। 
सृष्टि   सृजन  प्रारब्ध दिन , हो  जीवन   उत्कर्ष।।१।।
प्रथम   विष्णु अवतार  यह, महर्षि गौतम जन्म।
आर्यसमाजी     स्थापना , रामराज्य       सद्धर्म।।२।।
विक्रम का  राज्याभिषेक , राजतिलक   रघुराम।
चैत्रमाह    नवरात्र   का , पुष्पित  चहुँ अभिराम।।३।।
हरित भरित पादप लता , कली  कुसुम   नवरंग।
मादक मन रोचक सुरभि, जीवन   खिले   उमंग।।४।।
खिली खिली सुष्मित प्रकृति, नयासाल चहुँओर।
भरा गेह  नव अन्न से , चहुँदिशि कोकिल    शोर।।५।।
लखि किसान मुखहास मन,आनन्दित कविलेख।
अन्नपूर्ण   माँ   भारती , पुलकित   मानव    देख।।६।।
मादक मन  अलिवृन्द  का , मधुमक्खी  अनुराग।
विहँसि रहे सुरभित कुसुम , चाहत   पुष्प  पराग।।७।।
चैत्रमास पावन दिवस , कवि  निकुंज अभिलास।
रोग शोक मद मोह सब, सर्वशान्ति सुख   भास।।८।।
हर   कोरोना   शैलपुत्रि , रामलला    हर   शोक। 
दैहिक    दैविक   भौतिकी , महारोग  को  रोक।।९।।
महिषासुर   बन कर  डँटा , कोरोना  फिर विश्व।
सुन्दरतम   प्रमुदित   धरा , खतरे में   अस्तित्व।।१०।।
कवलित मुख  मानव जगत , कोरोना   आतंक।
त्राण   करो   बह्मचारिणि, हर   कोरोना   कोप।।११।।
तारक बन फिर अवतरित, कोरोना  यह    पाप। 
चन्द्रघण्ट   जगदम्बिका , हर    तारक    संताप।।१२।।
महाकाल      मधुकैटभ   समा, कोरोना   दुर्जेय।
हर    कुष्माण्डे   शान्तिदे , धूमासुर    इस   हेय।।१३।।
स्कन्धमातु     करुणामयी,     कोरोना     नासूर।
चण्ड मुण्ड इस  कहर को , चामुण्डे  कर    दूर।।१४।।
रक्तबीज    प्रकटित   पुनः , कोरोना   बन काल।
जगतारिणि   कात्यायिनी , हरो दैत्य   विकराल।।१५।।
कालरात्रि   विकराल   बन ,  कोरोना अभिशप्त।
रत निशुम्भ जग ग्रास को , हर दावानल     तप्त।।१६।।
प्रकटित   हो  बहुरूपिणी , करो   शुम्भ   संहार।
कोराना   से   त्राण   कर   , दुर्गे   दे      उपहार।।१७।। 
रहें   दूर  हम  पाप  से , निर्मल    रह  घर   पूज।
सिद्धिदातृ   सुख  शान्ति दे ,  हो  कोरोना  दूज।।१८।।
दुर्गा   दुर्गति    नाशिनी ,  महाशक्ति    जगदम्ब।
रखो स्वस्ति मानव जगत् , तू  जीवन  अवलम्ब।।१९।।
निकुंज दग्ध लखि वेदना , दंशित कोरोना  सर्प।
कालविनाशनि कालिके , माँ कुचलो अहि  दर्प।।२०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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