कवि✍️डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज'' रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दिनांकः ०९.०३.२०२०
वारः मंगलवार
विधाः दोहा
छन्दः मात्रिक
🌹होली🌹
पिचकारी  भर    के   चली , राधे   गोपी   संग।
गिरधारी    भागे   फिरे , भरे      बालटी     रंग।।१।।
रिमझिम रिमझिम वारिशें , मनभावन मधुमास।
रंग   हाथ   ले    राधिका ,दौड़ी   कान्हा  पास।।२।।
रंगरसिया  माधव  सजन ,  रंग   देख  मुस्कात। 
पकड़ हाथ प्रिय राधिका, सजनी मन सकुचात।।३।।
कहाँ    भागते    हो   लला , डालूँगी   मैं    रंग।
होली   की    रंगों   भरी , गाओगे   पी      भंग।।४।।
घिरे   हुए   चहुँओर   से , नटखट    तू  गोपाल।
यशुमति  मुरलीधर लगा ,छिपकर गाल गुलाल।।५।।
रंग  भरी   पिचकारियाँ ,  होली   गोकुल  धाम।
ब्रजवासी  संग  राधिका , भींगे  तनु  घनश्याम।।६।।
घिरे  कृष्ण  चहुँओर  से, लखि  राधा  मुस्कान।
रंगों     की    रंगरेलियाँ , मधुशाला     मधुपान।।७।।
मोरमुकुट सरसिज नयन, रंजित  मन  गोविन्द।
भींगे   तन   रंगे   वसन , राधा  मुख  अरविन्द।।८।।
मन माधव मधुवन सुभग,विस्मृत मन सब राग।
मधुर   गान  झूमे    मिलें , सद्भावन    अनुराग।।९ ।।
शुभ मंगल दर्शन कठिन , राधा प्रिय  चितचोर।
नमन करें सादर  विनत , होली  में  कर   जोर।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज''
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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