दोहे
श्रवण पठन लेखन सदा , आलोचन साहित्य।
गीति रीति कविकामिनी ,लेखन मम औचित्य।।१।।
सेवन नित साहित्य का , हूँ हिन्दी फनकार।
अन्वेषक मधुरिम कुसुम , भ्रमर बना गुंजार।।२।।
कवि मानक नियमावली , सहमत नित सम्मान।
रीति प्रीति रसगुण सहित , काव्य ध्येय श्रीमान।।३।।
निज लेखन साहित्य में , करूँ शब्द शृङ्गार।
हिन्दी हो सुरभित वतन, सुखद शान्ति उपहार।।४।।
कलमकार हिन्दी वतन , गद्य पद्य अभिधान।
रीति शिल्प रसगुणमयी , परलेखन सम्मान।।५।।
आवश्यक नियमावली , अनुशासित आचार।
पठन श्रवण लेखन सहज,कवि लेखक आधार।।६।।
सर्वप्रथम पाठक समझ , बाद बना कविकार।
आलोचक गद्दार का ,श्रावक कवि फनकार।।७।।
कवि लेखन दर्पण सदा , प्रेरक नित समाज।
रचता हूँ कवितावली , नयी क्रान्ति आगाज।।८।।
सदाचार कवि भंगिमा , भारत माँ जयगान।
मानवता बस ध्येय कवि , नवजीवन रसपान।।९।।
कवि निकुंज जीवन सफल, लेखन पाए मान।
ओत प्रोत भक्ति वतन , ध्येय अमन उत्थान।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली
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