🌹कुण्डलियाँ फागुन के✍️
कण्ठहार प्रिय पास , हर्षित सजन इतराए।
प्रिया धरे प्रिय हाथ , प्रियतम मधुर मुस्काए।।१।।
गाता फागुन गीत , पी भांग नशा मदमाते।
मिलन प्रिया मनप्रीत , मुदित सजन शरमाते।।२।।
मलती गाल गुलाल , नैन नशीली नटखटें ।
रोमांचित तन सजन, मचल रहा ले करवटें।।३।।
व्याकुल रति अभिसार,बनी अधीरा प्रियतमा।
खींच रही प्रिय हाथ ,बोल लोल वह मधुरिमा।।४।।
मीन सम सजल नयन, काली वेणी लहराए।
बिम्ब लाल स्मित अधर,पतली कमर लचकाए।।५।।
रंजित मानस निकुंज , रंगों से फागुन सजे।
लगा प्रीत सतरंग , प्रेमयुगल लेते मजे।।६।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नयी दिल्ली
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नयी दिल्ली
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