कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दिनांकः ०३.०३.२०२०
वारः मंगलवार
विधाः विधा
छंदः  मात्रिक
शीर्षक: लज्जित है संवेदना
न्याय    लचीला   है   यहाँ , लोकतंत्र  है  मीत। 
अन्यायी पातक खली , न्याय  गेह   हो   जीत।।१।।
निर्भय है   कामी   खली , न्याय  गेह   लाचार।
अधिवक्ता धन लोभ में , विरत न्याय   आचार।।२।।
भक्षक  के    रक्षक  बहुत , बनते     पैरोकार।
पाये   कैसे   निर्भया , सबल   न्याय   उपहार।।३।।
भ्रष्ट तंत्र व्यभिचार अब, नित बढ़ता  अपराध।
हो विलम्ब  जब  न्याय में , घूमें  खल  निर्बाध।।४।।
कहाँ  सुरक्षित  बेटियाँ , कहाँ   सुरक्षित   धर्म।
कहाँ त्याग गुण शील अब,कहँ नैतिक सत्कर्म।।५।।
तड़प  रहा  है  न्याय अब , अन्यायी के हाथ।
संविधान की ली शपथ,तज विधान का साथ।।६।।
मत गाओ मनमीत अब, नारी मन  का क्लेश।
लज्जित   है  संवेदना , कहाँ  न्याय  परिवेश।।७।।
दुस्साहस  देखो  नृशंस, माँग प्राण की भीख।
न्याय गेह दिल है सदय,कौन सुने अब चीख।।८।। 
बार  बार  फाँसी टले , बढ़ता  जन आक्रोश।
घटी आस्था न्याय का , पापी  बढ़ता   जोश।।९।।
कवि निकुंज अन्तःकरण,आहत नारी  पीर।
मिले न्याय कब निर्भया , रूके नैन  की नीर।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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