दिनांकः ०३.०३.२०२०
वारः मंगलवार
विधाः विधा
छंदः मात्रिक
शीर्षक: लज्जित है संवेदना
न्याय लचीला है यहाँ , लोकतंत्र है मीत।
अन्यायी पातक खली , न्याय गेह हो जीत।।१।।
निर्भय है कामी खली , न्याय गेह लाचार।
अधिवक्ता धन लोभ में , विरत न्याय आचार।।२।।
भक्षक के रक्षक बहुत , बनते पैरोकार।
पाये कैसे निर्भया , सबल न्याय उपहार।।३।।
भ्रष्ट तंत्र व्यभिचार अब, नित बढ़ता अपराध।
हो विलम्ब जब न्याय में , घूमें खल निर्बाध।।४।।
कहाँ सुरक्षित बेटियाँ , कहाँ सुरक्षित धर्म।
कहाँ त्याग गुण शील अब,कहँ नैतिक सत्कर्म।।५।।
तड़प रहा है न्याय अब , अन्यायी के हाथ।
संविधान की ली शपथ,तज विधान का साथ।।६।।
मत गाओ मनमीत अब, नारी मन का क्लेश।
लज्जित है संवेदना , कहाँ न्याय परिवेश।।७।।
दुस्साहस देखो नृशंस, माँग प्राण की भीख।
न्याय गेह दिल है सदय,कौन सुने अब चीख।।८।।
बार बार फाँसी टले , बढ़ता जन आक्रोश।
घटी आस्था न्याय का , पापी बढ़ता जोश।।९।।
कवि निकुंज अन्तःकरण,आहत नारी पीर।
मिले न्याय कब निर्भया , रूके नैन की नीर।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना: मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना: मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली
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